इंसानों को होने वाली बीमारियों के लिए आज भले ही आयुर्वेद के साथ एलौपैथी, होम्योपैथी, नैचुरोपैथी जैसी इलाज की कई विधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन मेडिकल साइंस आने से पहले धरती पर इंसान केवल और केवल पेड़-
पौधों और जड़ी बूटियों से ही बीमारियों का इलाज किया करते थे. क्रमिक विकास के साथ पारंपरिक चिकित्सा में जानवरों का भी इस्तेमाल किया जाने लगा. चीन पर कई विलुप्तप्राय जानवरों के शोषण के आरोप लगते रहे हैं.
वहां की पारंपरिक चिकित्सा (TCM) में जानवरों की 36 तरह की प्रजातियों का इस्तेमाल होता रहा है, जिनमें पैंगोलिन, बाघ, भालू और समुद्री घोड़े जैसे जानवर भी शामिल हैं.
आम धारणा यह है कि सांप, बिच्छू, मकड़ी या अन्य जानवरों का जहर इंसान की जान के लिए खतरा होता है. लेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि इन जानवरों के जहर से कई तरह की दवाएं बनाई जाती हैं,
जो गठिया, डायबिटीज, हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कैंसर जैसी बीमारियों में जीवनरक्षक साबित होती हैं. दवाओं में जिन जहरों का इस्तेमाल किया जाता है, उसका बड़ा हिस्सा सांप से आता है.
धरती पर सांप ही सबसे ज्यादा जहर का उत्पादन करते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, मकड़ी एक दिन में 10 मिलीलीटर, जबकि बिच्छू केवली दो मिलीलीटर जहर प्रॉड्यूस कर सकता है.